उत्तराखंड ने अक्टूबर 2025 में शिक्षा के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा है, जब राज्य सरकार ने Minority Education Bill, 2025 को पारित कर Madrasa Board Act, 2016 और संबंधित नियमों को समाप्त करने का ऐलान किया। इस बिल की मंज़ूरी मिलने के बाद, अब राज्य के सभी मदरसे एवं अल्पसंख्यक विद्यालयों को Uttarakhand State Minority Education Authority (USMEA) के तहत काम करना होगा और Board of School Education Uttarakhand से मान्यता लेनी होगी।
कानूनी बदलाव: मदरसा बोर्ड से मुख्यधारा तक
इस नए कानून के अनुसार, Madrasa Board Act, 2016 और Non-Government Arabic & Persian Madrasa Recognition Rules, 2019 को 1 जुलाई 2026 से प्रभावी रूप से समाप्त कर दिया जाएगा।
इसका मतलब है कि मदरसे अब अलग प्रणाली से नहीं चलेंगे, बल्कि उन्हें समान शिक्षा मानदंडों, पारदर्शी मूल्यांकन और मुख्यधारा के पाठ्यक्रम (NEP-2020, NCF) के अनुरूप तैयार होना होगा।

अधिकार क्षेत्रों का विस्तार: सभी अल्पसंख्यक शामिल होंगे
पहले अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों में मान्यता सिर्फ मुस्लिम-समुदाय के मदरसे ही पाते थे। अब इस बिल के अनुसार, Sikh, Jain, Christian, Buddhist और Parsi संस्थाएँ भी उसी मान्यता और सामाजिक अधिकार की श्रेणी में आएँगी।
यह कदम शिक्षा में समानता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है—हर बच्चा, चाहे किसी समुदाय से हो, मुख्यधारा की शिक्षा और बेहतर अवसर पाने में पीछे न रहे।
कार्यवाही और लागू होने की प्रक्रिया
राज्य सरकार ने इस कानून को अगस्त 2025 में कैबिनेट की मंज़ूरी दी थी और बाद में विधानसभा सत्र में पारित किया गया था।
1 जुलाई 2026 से सभी अल्पसंख्यक विद्यालयों और मदरसों को नई व्यवस्था के तहत USMEA से पंजीकरण करना अनिवार्य होगा, और जो संस्थाएँ इस नियम का पालन नहीं करेंगी, उनकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी।
समर्थन और विवाद: संतुलन की चुनौती
मुख्यमंत्री Pushkar Singh Dhami ने कहा कि यह निर्णय पारदर्शिता, गुणवत्ता और जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में है।
वहीं, कुछ अल्पसंख्यक संगठन इस बदलाव को धार्मिक शिक्षा की स्वायत्तता पर हमला मान रहे हैं और सवाल उठा रहे हैं कि क्या इस नई व्यवस्था में धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई विविधता का सम्मान होगा या नहीं।
उत्तराखंड द्वारा पास किया गया this reform एक बड़े और साहसिक कदम की तरह है — मदरसा बोर्ड को खत्म कर, शिक्षा को समान दर्जा देना, और समाज में समान अवसर सुनिश्चित करना। यह न केवल इस राज्य के लिए, बल्कि पूरे देश के शिक्षा नीतियों के लिए मिसाल बन सकता है कि कैसे अल्पसंख्यक शिक्षा को मुख्यधारा में शामिल कर सामाजिक न्याय और विकास को आगे बढ़ाया जाए।
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