DU Politics : दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) चुनाव 2025-26 के नतीजे घोषित हो चुके हैं और इस बार के परिणामों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि डीयू का छात्र किसी एक छात्र संगठन के पक्ष में पूरी तरह से नहीं, बल्कि मुद्दों और उम्मीदवारों के आधार पर वोट देता है। एक बेहद कड़े और गहमागहमी भरे मुकाबले के बाद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के आर्यन मान ने अध्यक्ष पद पर जीत का परचम लहराया है।
हालांकि, यह जीत ABVP के लिए एकतरफा नहीं रही, क्योंकि उपाध्यक्ष पद पर नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) के राहुल झासला ने बाजी मारी है, जो एक मिले-जुले जनादेश का स्पष्ट संकेत है। सचिव और संयुक्त सचिव के पदों पर ABVP ने अपना कब्जा बरकरार रखा है, जिससे पैनल में उसका बहुमत सुनिश्चित हो गया है।
चुनाव का माहौल और प्रमुख मुद्दे
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव हमेशा से ही राष्ट्रीय राजनीति का एक छोटा संस्करण माने जाते रहे हैं। इस साल भी चुनाव प्रचार के दौरान कैंपस का माहौल पूरी तरह से राजनीतिक रंग में रंगा हुआ था। ABVP, NSUI, और लेफ्ट समर्थित AISA-SFI जैसे प्रमुख छात्र संगठनों ने छात्रों को लुभाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। नॉर्थ कैंपस से लेकर साउथ कैंपस तक, कॉलेजों की दीवारों पर पोस्टर चिपके थे, नारों की गूंज सुनाई दे रही थी और छात्र नेताओं की टोलियां कक्षाओं में जाकर अपने पक्ष में माहौल बना रही थीं।इस बार के चुनाव में छात्रों के बीच कई मुद्दे हावी रहे।
हॉस्टल की कमी और बाहरी छात्रों के लिए महंगे किराये का मुद्दा सबसे प्रमुख था। इसके अलावा, कैंपस में सुरक्षा, खासकर महिला सुरक्षा, सार्वजनिक परिवहन की बेहतर कनेक्टिविटी, लाइब्रेरी की सुविधाओं को 24 घंटे खुला रखना और फीस वृद्धि जैसे मुद्दों पर सभी संगठनों ने बड़े-बड़े वादे किए। इन्हीं वादों और मुद्दों की पृष्ठभूमि में छात्रों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।

नतीजों का विस्तृत विश्लेषण
इस साल चार प्रमुख पदों के लिए कुल 21 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन मुख्य मुकाबला हमेशा की तरह ABVP और NSUI के बीच ही देखने को मिला।
अध्यक्ष पद :
अध्यक्ष पद पर ABVP के आर्यन मान की जीत संगठन के लिए एक बड़ी सफलता है। उनके सामने NSUI की जोसलिन नंदिता चौधरी और AISA-SFI की संयुक्त उम्मीदवार अंजलि ने मजबूत चुनौती पेश की, लेकिन अंतिम गिनती में आर्यन मान विजयी घोषित हुए। उनकी जीत के पीछे संगठन का मजबूत कैडर और कैंपस में लंबे समय से चल रही सक्रियता को एक बड़ा कारण माना जा रहा है।
उपाध्यक्ष पद :
उपाध्यक्ष पद पर NSUI के राहुल झासला की जीत ने नतीजों को बेहद दिलचस्प बना दिया है। यह दिखाता है कि छात्रों ने ABVP को पूरी तरह से सत्ता सौंपने की बजाय एक संतुलन बनाने की कोशिश की है। NSUI इस जीत को अपनी वापसी के तौर पर देख रही है और यह पैनल के भीतर शक्ति संतुलन को भी प्रभावित करेगा।
सचिव और संयुक्त सचिव :
सचिव और संयुक्त सचिव, दोनों पदों पर ABVP के उम्मीदवारों की जीत ने यह सुनिश्चित किया कि चार सदस्यीय पैनल में ABVP के पास तीन सीटें हैं। इससे संगठन को छात्र संघ के कामकाज में बहुमत का लाभ मिलेगा और वह अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्षम होगा।
DUSU अध्यक्ष : शक्तियां और महत्व
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष होना सिर्फ एक पद नहीं, बल्कि एक बड़ी जिम्मेदारी और शक्ति का प्रतीक है। यह पद छात्र राजनीति की सबसे शक्तिशाली कुर्सियों में से एक माना जाता है और इसे राष्ट्रीय राजनीति की नर्सरी भी कहा जाता है।
DUSU अध्यक्ष को मिलने वाली शक्तियों में सबसे प्रमुख है विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ सीधा संवाद करने का अधिकार। वह छात्रों की समस्याओं को सीधे कुलपति (Vice-Chancellor) और विश्वविद्यालय की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्थाओं, जैसे अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद, के समक्ष रख सकता है। छात्र हितों से जुड़े किसी भी फैसले में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

इसके अलावा, अध्यक्ष को अपना कामकाज चलाने के लिए विश्वविद्यालय की ओर से एक कार्यालय, स्टाफ और आवागमन के लिए एक गाड़ी जैसी सुविधाएं मिलती हैं। छात्र संघ की गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और अन्य छात्र कल्याण योजनाओं के लिए एक निर्धारित बजट भी अध्यक्ष के नियंत्रण में होता है। यही कारण है कि DUSU का अध्यक्ष पद हर छात्र संगठन के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन जाता है। देश के कई बड़े नेता जैसे अरुण जेटली, अजय माकन, और विजय गोयल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत DUSU से ही की थी।
नए पैनल के सामने चुनौतियां
इस मिले-जुले जनादेश वाले पैनल के सामने अब कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो पैनल के भीतर सामंजस्य स्थापित करने की होगी। अध्यक्ष ABVP का है और उपाध्यक्ष NSUI का, ऐसे में यह देखना होगा कि क्या दोनों संगठन आपसी वैचारिक मतभेदों को भुलाकर छात्र हितों के लिए मिलकर काम कर पाते हैं या फिर उनके बीच टकराव की स्थिति बनी रहती है।
इसके अलावा, चुनाव में किए गए वादों को पूरा करने का दबाव भी उन पर तुरंत शुरू हो जाएगा। हॉस्टल की समस्या, कैंपस में सुरक्षा और परिवहन जैसे मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर छात्र तत्काल कार्रवाई देखना चाहेंगे। आर्यन मान और उनकी टीम को यह साबित करना होगा कि वे केवल चुनावी वादे नहीं करते, बल्कि उन्हें पूरा करने की क्षमता भी रखते हैं। अगले एक साल तक दिल्ली विश्वविद्यालय के लाखों छात्रों की निगाहें उनके प्रदर्शन पर टिकी रहेंगी।
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