भारत की राजनीति और समाज में कुछ ऐसे नाम हैं जो साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर असाधारण ऊँचाइयाँ हासिल करते हैं। आचार्य देवव्रत (Acharya Devvrat) उन्हीं में से एक हैं। एक शिक्षक, समाजसेवी, आर्यसमाजी विचारक और फिर राज्यपाल तक का उनका सफर प्रेरणादायी है। उन्होंने अपनी सादगी और कार्यशैली से न केवल राजनीतिक गलियारों बल्कि समाज के अलग-अलग वर्गों का ध्यान अपनी ओर खींचा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
आचार्य देवव्रत (Acharya Devvrat) का जन्म 18 जनवरी 1959 को हुआ। आरंभिक पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद उनका झुकाव वैदिक शिक्षा और भारतीय संस्कृति की ओर हुआ। उन्होंने ‘गुरुकुल कुरुक्षेत्र’ से शिक्षा प्राप्त की और यहीं से वैदिक जीवनशैली को अपनाते हुए समाजसेवा का बीड़ा उठाया। शिक्षा के दौरान ही उनमें अनुशासन, सादगी और सामाजिक चेतना जैसे गुण विकसित हुए, जिसने आगे चलकर उनके व्यक्तित्व को निखारा।
शिक्षा जगत में योगदान
करियर की शुरुआत में ही उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र को चुना। वे लंबे समय तक **गुरुकुल कुरुक्षेत्र** के प्राचार्य रहे। यहाँ उन्होंने आधुनिक शिक्षा को वैदिक परंपरा से जोड़ने का प्रयास किया। उनका मानना था कि शिक्षा केवल रोजगार पाने का साधन नहीं होनी चाहिए, बल्कि जीवन को मूल्य आधारित बनाने का माध्यम होनी चाहिए। एक शिक्षक के रूप में उन्होंने हजारों विद्यार्थियों को शिक्षा और संस्कार दिए।
आर्य समाज से जुड़ाव
आचार्य देवव्रत का आर्य समाज से गहरा जुड़ाव रहा। उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती के सिद्धांतों को जीवन में अपनाया और वैदिक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कई आंदोलन चलाए। गौसंवर्धन, नशामुक्ति, महिला शिक्षा और सामाजिक सुधार जैसे मुद्दों पर वे हमेशा सक्रिय रहे। उनका मानना था कि भारतीय समाज तभी प्रगति कर सकता है जब वह अपनी जड़ों से जुड़ा रहे और अंधविश्वास से मुक्त होकर वैज्ञानिक सोच को अपनाए।
राजनीतिक सफर की शुरुआत
शिक्षक और समाजसेवी की छवि के कारण ही उन्हें राजनीति में अवसर मिला। 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा नेतृत्व ने उन्हें राजनीति में एक अहम जिम्मेदारी दी। 11 अगस्त 2015 को वे हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त किए गए। यह उनके जीवन का एक बड़ा मोड़ था, क्योंकि वे सीधे शिक्षा और समाज सेवा से संवैधानिक पद तक पहुँचे।
हिमाचल प्रदेश और गुजरात के राज्यपाल
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहते हुए आचार्य देवव्रत ने शिक्षा, पर्यावरण और समाज सुधार के मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने किसानों के बीच *प्राकृतिक खेती (Natural Farming)*को बढ़ावा दिया। उनकी पहल पर हिमाचल में हजारों किसानों ने केमिकल मुक्त खेती की ओर कदम बढ़ाया। यह मॉडल बाद में पूरे देश में चर्चा का विषय बना।
इसके बाद जुलाई 2019 में उन्हें **गुजरात का राज्यपाल** बनाया गया। गुजरात जैसे औद्योगिक और राजनीतिक रूप से अहम राज्य में उन्होंने किसानों और शिक्षा जगत से जुड़े अभियानों को आगे बढ़ाया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कई मंचों से आचार्य देवव्रत के प्रयासों की सराहना की।

अब महाराष्ट्र के राज्यपाल
हिमाचल और गुजरात में सफल कार्यकाल के बाद केंद्र ने उन्हें एक और बड़ी जिम्मेदारी दी। 2025 में आचार्य देवव्रत को **महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया।** महाराष्ट्र जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य में उनका कार्यकाल बेहद अहम माना जा रहा है। यहाँ भी वे शिक्षा, प्राकृतिक खेती और सामाजिक सुधार जैसे मुद्दों को आगे बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं।
व्यक्तिगत जीवन और छवि
आचार्य देवव्रत (Acharya Devvrat) अपनी सादगी, ईमानदारी और अनुशासन के लिए जाने जाते हैं। वे सादा जीवन और उच्च विचार की नीति पर चलते हैं। यहाँ तक कि राज्यपाल रहते हुए भी वे वैदिक जीवनशैली, योग और प्राकृतिक जीवन पद्धति को बढ़ावा देते रहे। उनकी छवि एक “शिक्षक राज्यपाल” और “समाज सुधारक” के रूप में बनी।
आचार्य देवव्रत का जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि व्यक्ति में समर्पण और ईमानदारी हो, तो वह शिक्षा से लेकर संवैधानिक पद तक अपनी पहचान बना सकता है। गुरुकुल के प्राचार्य से शुरू हुआ उनका सफर हिमाचल, गुजरात और अब महाराष्ट्र जैसे तीन बड़े राज्यों के राज्यपाल तक पहुँचा। आज भी वे शिक्षा, संस्कृति और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रेरणा बने हुए हैं।
Also Read :