Pollution पर ‘Rain Bomb’ : Artificial Rain से दिल्ली में शुरू होगी सफाई की बारिश

हर साल की तरह इस बार भी दिवाली के बाद दिल्ली की हवा ज़हरीली हो चुकी है। आसमान पर छाई धुंध, सांस लेने में कठिनाई और AQI का ‘खतरनाक’ स्तर पार करना राजधानी के लिए सामान्य हो गया है। ऐसे में दिल्ली सरकार ने एक अनोखा कदम उठाया है—कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) का। यह वही तकनीक है जो दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों—जैसे चीन, यूएई और अमेरिका—में प्रदूषण और सूखे से निपटने के लिए इस्तेमाल की जाती है।

कृत्रिम वर्षा क्या होती है और कैसे होती है बारिश की ‘इंजीनियरिंग’?

कृत्रिम वर्षा या Cloud Seeding एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें हवाई जहाज या विशेष ड्रोन की मदद से बादलों में सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या ड्राई आइस जैसे रसायन छोड़े जाते हैं। ये कण बादलों में मौजूद जलवाष्प को आकर्षित करते हैं, जिससे छोटे कण आपस में मिलकर बड़ी बूंदों में बदल जाते हैं, और अंततः बारिश होती है। इस प्रक्रिया को एक तरह की “मानव-निर्मित बारिश” कहा जा सकता है, जिसका इस्तेमाल अक्सर सूखा, प्रदूषण या फसल संकट की स्थिति में किया जाता है।

दिल्ली का प्रयोग: विज्ञान और उम्मीद का संगम

दिल्ली सरकार ने IIT Kanpur और मौसम विभाग के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर देश का सबसे बड़ा क्लाउड सीडिंग अभियान शुरू करने का फैसला किया है। यह प्रयोग अक्टूबर 2025 के अंतिम सप्ताह में होने जा रहा है, जब मौसम विभाग ने बादलों की पर्याप्त उपस्थिति की संभावना जताई है। योजना के तहत विशेष विमान दिल्ली के ऊपर उड़ान भरेंगे और जब बादल नमी से भर जाएंगे, तब उनमें सीडिंग फ्लेयर्स छोड़े जाएंगे। इसके बाद कुछ ही घंटों में बारिश होने की उम्मीद रहेगी, जो हवा में फैले जहरीले कणों को नीचे गिरा देगी।

Artificial Rain

क्यों जरूरी बना यह कदम?

दिवाली के बाद पराली के धुएं, पटाखों और ट्रैफिक के उत्सर्जन से दिल्ली की हवा में घातक स्तर का स्मॉग बन जाता है। अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ जाती है और बच्चे-बुजुर्ग सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। ऐसे में सरकार के पास तुरंत राहत देने का कोई और तरीका नहीं बचता। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कृत्रिम वर्षा सफल रहती है तो इससे PM 2.5 और PM 10 जैसे खतरनाक कणों की मात्रा 40-50% तक घट सकती है।

वैज्ञानिकों की राय और सामने आने वाली चुनौतियाँ

हालांकि यह कदम सराहनीय है, लेकिन वैज्ञानिक इसे स्थायी समाधान नहीं मानते। उनका कहना है कि क्लाउड सीडिंग तभी सफल होती है जब बादलों में पर्याप्त नमी हो—अन्यथा यह तकनीक बेअसर साबित होती है। इसके अलावा, रसायनों के पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर भी सवाल हैं। सरकार ने स्पष्ट किया है कि प्रयोग के बाद बारिश के पानी की वैज्ञानिक जांच की जाएगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इससे पीने के पानी या मिट्टी पर कोई नकारात्मक असर न पड़े।

दिल्ली सरकार की तैयारी और लोगों के लिए एडवाइजरी

सरकार ने मौसम विभाग, IIT Kanpur और नागरिक संस्थाओं के साथ मिलकर समन्वय तंत्र तैयार किया है। यदि बारिश होती है, तो ट्रैफिक, बिजली और जल निकासी की विशेष व्यवस्थाएँ सक्रिय की जाएँगी। स्कूलों, अस्पतालों और आम नागरिकों को सतर्क रहने की सलाह दी गई है—विशेषकर खुले पानी के संपर्क और अचानक मौसम बदलने के मामलों में।

उम्मीद की बारिश या अस्थायी राहत?

29 अक्टूबर 2025 को दिल्ली में होने वाली यह कृत्रिम वर्षा सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं, बल्कि दिल्लीवासियों की “सांस की जंग” में नई उम्मीद है। यह कदम निश्चित रूप से तात्कालिक राहत दे सकता है, लेकिन प्रदूषण की असली लड़ाई तब जीती जाएगी जब वाहन उत्सर्जन, पराली जलाने और औद्योगिक धुएं जैसे मूल कारणों पर नियंत्रण होगा।

अगर यह प्रयोग सफल रहता है, तो यह भारत के पर्यावरण इतिहास में एक नया अध्याय लिखेगा—जहाँ विज्ञान, प्रशासन और समाज मिलकर साफ हवा के सपने को साकार करने की दिशा में बढ़ेंगे।

क्या आप सोचते हैं कि Artificial Rain सचमुच दिल्ली की हवा को बदल पाएगी?

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