बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने साफ कहा कि शराबबंदी लागू करना अलग बात है, लेकिन इसे लागू करने का तरीका और इसके परिणाम दोनों ही गंभीर चिंता का विषय हैं।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि बिहार में 2016 से लागू शराबबंदी कानून ने न्यायपालिका, पुलिस और जनता – सभी पर भारी बोझ डाल दिया है। कोर्ट ने टिप्पणी की, “यह कानून जितना नियंत्रण के लिए बनाया गया था, उतना ही अब परेशानी का कारण बन गया है।”
सुप्रीम कोर्ट ने उठाए बड़े सवाल
कोर्ट ने बिहार सरकार से कई अहम सवाल पूछे:
- क्या आपके पास कोई ठोस डेटा है जो दिखाता हो कि शराबबंदी लागू होने के बाद शराब की खपत में कमी आई है?
- क्या अधिकारी किसी के घर में आधी रात को घुसकर तलाशी ले सकते हैं या सांस विश्लेषक (Breath Analyser) टेस्ट के लिए मजबूर कर सकते हैं?
- क्या नकदी जब्त करने का प्रावधान न्यायसंगत है?
अदालत ने इसे अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के तहत गंभीर मामला बताया और कहा कि यह लोगों की निजी स्वतंत्रता से जुड़ा सवाल है।

अदालतों पर बढ़ रहा बोझ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानून की वजह से पटना हाईकोर्ट में मुकदमों की बाढ़ आ गई है। 2022 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमणा ने भी इस पर चिंता जताई थी कि बिहार में जजों का ज़्यादातर समय शराबबंदी से जुड़े जमानत मामलों में ही चला जाता है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को आदेश दिया है कि वह 2016 से अब तक दर्ज हुए केसों का पूरा डेटा अदालत में पेश करे, ताकि पता लगाया जा सके कि इस कानून का वास्तविक प्रभाव क्या रहा है।
पुलिसिया कार्रवाई और अधिकारों पर सवाल
हाल में पटना हाईकोर्ट ने केवल सांस विश्लेषक रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तारी को अवैध ठहराया था, जिसे बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह बताए कि ऐसे प्रावधान संविधान के अनुरूप कैसे हैं।
क्या वाकई शराबबंदी सफल हुई?
कोर्ट ने यह भी कहा कि शराबबंदी की मंशा अच्छी थी, लेकिन उसका परिणाम ज़मीनी हकीकत से मेल नहीं खा रहा। राज्य में अवैध शराब व्यापार, पुलिसिया भ्रष्टाचार और फर्जी गिरफ्तारी जैसे मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 9 साल बाद भी इस कानून का कोई ठोस फायदा नज़र नहीं आता। कुछ रिपोर्ट्स तो यह भी कहती हैं कि शराबबंदी के नाम पर समानांतर अवैध नेटवर्क पनप गया है।
सियासत भी गरमाई
यह मुद्दा अब पूरी तरह राजनीतिक बहस का केंद्र बन चुका है। विपक्ष ने नीतीश कुमार सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि “शराबबंदी कानून ने न तो समाज को सुधारा और न ही अपराध कम किया।”
वहीं जेडीयू का कहना है कि “कानून की भावना सामाजिक सुधार की है, इसमें सुधार किया जा सकता है, हटाया नहीं जा सकता।”
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