भारत ने पर्यावरण और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (BLW), वाराणसी में देश का पहला ऐसा पायलट प्रोजेक्ट शुरू हुआ है, जिसमें रेलवे ट्रैक के बीच सोलर पैनल लगाए गए हैं। इस अनोखी पहल ने न केवल रेलवे के ग्रीन मिशन को नई गति दी है, बल्कि यह दिखाया है कि कैसे सीमित संसाधनों का उपयोग करते हुए स्थायी ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।
कैसे तैयार हुआ यह सोलर ट्रैक सिस्टम
BLW के प्रांगण में करीब 70 मीटर लंबे ट्रैक हिस्से पर कुल 28 सोलर मॉड्यूल लगाए गए हैं। इन पैनलों की कुल क्षमता 15 किलोवाट पीक (kWp) है। अधिकारियों के मुताबिक, इस सिस्टम से सालभर में लगभग 3.21 लाख यूनिट बिजली पैदा होगी। यह ऊर्जा BLW परिसर की जरूरतों को पूरा करेगी और बिजली खर्च को घटाने में मदद करेगी।
बिना ज़मीन अधिग्रहण के, ट्रैक से सीधे बिजली
इस प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए कोई अतिरिक्त ज़मीन नहीं ली गई। रेलवे की 1.2 लाख किलोमीटर लंबी पटरी नेटवर्क के बीच अक्सर खाली जगह रहती है।

इसी का उपयोग करते हुए BLW ने यह नवाचार (Innovation) पेश किया — जहाँ ट्रेनों की आवाजाही और बिजली उत्पादन एक साथ संभव हुआ। यह “Dual-Use Infrastructure” का शानदार उदाहरण बन गया है।
तकनीकी चुनौतियाँ और उनका समाधान
ट्रेन के लगातार गुजरने से ट्रैक में कंपन और धूल का स्तर अधिक रहता है। इन चुनौतियों को देखते हुए इंजीनियरों ने सोलर पैनल्स को रबर माउंटिंग पैड्स और इपॉक्सी एडहेसिव की मदद से लगाया है।
यह डिज़ाइन रिमूवेबल सोलर सिस्टम कहलाता है — यानी जरूरत पड़ने पर पैनल्स को आसानी से हटाकर ट्रैक की मरम्मत की जा सकती है और फिर दोबारा जोड़ा जा सकता है।
पैनल्स की दक्षता और उपयोगिता
प्रत्येक सोलर मॉड्यूल का वजन लगभग 31.8 किलोग्राम है और इनकी औसत दक्षता 21% तक है। यह सिस्टम धूल-रोधी, वॉटरप्रूफ और मौसम-प्रतिरोधी है, जिससे ट्रैक की स्थिति या ट्रेन मूवमेंट पर कोई असर नहीं पड़ता। इससे उत्पादन भी स्थिर और सुरक्षित रहता है।
ग्रीन एनर्जी मिशन की दिशा में बड़ा कदम
रेलवे का यह पायलट प्रोजेक्ट केवल एक तकनीकी प्रयोग नहीं, बल्कि एक सस्टेनेबल ट्रांसपोर्टेशन मॉडल का प्रतीक है। अगर यह प्रयोग सफल रहता है, तो इसे देशभर के प्रमुख स्टेशनों और रूट्स पर लागू किया जाएगा। इससे भारतीय रेलवे का नेट-ज़ीरो कार्बन एमिशन लक्ष्य तेजी से हासिल किया जा सकेगा।
भविष्य की झलक: ट्रैक जो रोशनी भी देगा
सोचिए, आने वाले समय में जब ट्रेनें दौड़ेंगी, तो वही पटरियां देश को ऊर्जा भी देंगी। यह विचार सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि भारत की हरित विकास यात्रा का प्रतीक है — जहाँ इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी और पर्यावरण, तीनों साथ कदम मिला रहे हैं।
रोशनी की पटरियों पर दौड़ता भारत
रेलवे के इस प्रयोग ने साबित कर दिया है कि नवाचार केवल मशीनों में नहीं, सोच में होता है। अब भारत के ट्रैक पर केवल लोहे की नहीं, सौर ऊर्जा की चमकती किरणें भी दौड़ेंगी। यह पहल आने वाले दशक में रेलवे को आत्मनिर्भर, स्वच्छ और तकनीकी रूप से अग्रणी बना सकती है।
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