राजस्थान के जयपुर में स्थित Neerja Modi School के मंसरोवर शाखा में शुक्रवार दोपहर एक नौ वर्षीय बच्ची (कक्षा 4) ने चौथी मंजिल से छलांग लगा दी और गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल में मृत घोषित हो गई। घटना ने स्कूल, माता-पिता और पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया।
सन्नाटा, अफरातफरी और अनसुलझे सवाल
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि बच्ची ने स्कूल की रेलिंग पर चढ़कर छलांग लगाई। उसकी चीख सुनकर स्टाफ पहुंचा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। CCTV फुटेज में यह दिखा है कि बच्ची नीचे गिरने से पहले रेलिंग से ऊपर थी।
परिवार ने स्कूल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाया है — कहा जा रहा है कि घटनास्थल से खून के धब्बे मिटाए गए थे। पुलिस इस मामले की गहरी जांच कर रही है।
सुरक्षा से लेकर मानसिक स्वास्थ्य तक: स्कूलों और पेरेंट्स के सामने बड़े सवाल
- क्या स्कूल की सुरक्षा-व्यवस्था पर्याप्त थी: चौथी मंजिल तक पहुंचने की अनुमति कैसे मिली?
- क्या बच्चों को अकेले-अकेले रहने, डरने या किसी परेशानी को महसूस करने पर काउंसलिंग/सहायता मिलती है?
- क्या माता-पिता और शिक्षक बच्चों के भावनात्मक संकेतों को पहचानते हैं — जैसे डर, उदासी, अकेलापन?

क्या करें माता-पिता और स्कूल?
बच्चों से रोज़ खुलकर संवाद करें — सिर्फ नंबर नहीं, उनकी भावनाओं को सुनें।
स्कूल में मेंटल हेल्थ काउंसलिंग, सुरक्षा गार्ड, सीसीटीवी एवं इमरजेंसी हेल्पलाइन अनिवार्य होनी चाहिए।
शिक्षक-प्रबंधन को समय-समय पर बच्चों के व्यवहार-परिवर्तन, डर या परेशानी पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
दर्द, सवाल और सीख — “अपने बच्चे की चुप्पी को ज़रूर सुनें”
यह हादसा सिर्फ एक परिवार का नहीं — साल दर साल बढ़ते स्कूल-सुरक्षा और स्वास्थ्य-प्रश्नों का प्रतीक है। बच्चों का डर, अकेलापन या मानसिक असहायपन कभी उस उम्र तक नहीं दिखता जब तक बहुत देर हो जाए।
अब सवाल है: क्या हमारे बच्चे सच में खुश, सुरक्षित और सुनने योग्य हैं?
हमारी जिम्मेदारी है कि सुनें, समझें और समय पर कदम उठाएँ — ताकि मासूम आवाज़ें किसी और ‘अलविदा’ से पहले सुनी जा सकें।