बेंगलुरु की उद्यमी अनुराधा तिवारी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था—“5 रुपये के बिस्किट पर सारी डिटेल्स छप सकती हैं तो 100 करोड़ की सड़क पर क्यों नहीं?” यह सवाल वायरल हुआ और सड़क निर्माण-परदर्शिता को लेकर जन-चिंता का रूप ले गया। उनकी इस पहल ने शासन-स्वीकृति पाने वाला विचार जन्म दिया—जहाँ हाईवे के हर पैच, कॉन्ट्रैक्टर, अधिकारी और निर्माण डेट कम-से-कम आम नागरिक के सामने हो सके।
मंत्री का ऐलान : पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम
नितिन गडकरी, केंद्रीय सड़क-परिवहन और राजमार्ग मंत्री, ने खुले मंच पर घोषणा की कि अब हर राष्ट्रीय हाईवे परियोजना पर एक QR Code लगेगा जिसमें यूनिक जानकारी मिलेगी—प्रोजेक्ट लागत, ठेकेदार का नाम, अधिकारी, डेटलाइन, मेंटेनेंस जिम्मेदारी आदि।
“अब जनता खुद देखेगी कि खराब सड़क किसकी है—कॉन्ट्रैक्टर की, अधिकारी की या मंत्री की।” उन्होंने कहा।
हालाँकि इस दिशा में अभी आधिकारिक प्रेस रिलीज़ या विस्तृत सरकारी गज़ेट में QR-कोड हिसाब से लागू होने की पुष्टि सार्वजनिक नहीं मिली है, लेकिन सोशल मीडिया और जन-मंचों पर चर्चा तेज़ है।

क्या जानकारी मिलेगी QR Code से?
- कौन ठेकेदार परियोजना का जिम्मेदार है?
- कार्य की अनुमानित लागत, अवधि और तिथियाँ क्या थीं?
- किस अधिकारी-मंत्री ने समीक्षा की?
- मेंटेनेंस का जिम्मेदार कौन है और शिकायत के लिए कौन संपर्क करेगा?
यह प्रणाली सड़क निर्माण और रख-रखाव में जवाबदेही ला सकती है, भ्रष्टाचार और घटिया क्वालिटी पर आंच ला सकती है।
लाभ और चुनौतियाँ
लाभ:
आम नागरिक को सड़क परियोजनाओं में सीधे जानकारी मिलना शुरू होगी।कमजोर-क्वालिटी वाले रोड्स के लिए जवाबदेही तय होगी।ट्रांसपेरेंसी से इंफ्रास्ट्रक्चर पर भरोसा बढ़ेगा।
चुनौतियाँ:
ठेकेदार, अधिकारी या मंत्री की जानकारी सार्वजनिक होने से प्राइवेसी और सुरक्षा-चिंताएँ उठ सकती हैं।QR-कोड पर भरोसा तभी होगा जब डेटा समय-सापेक्ष और सत्य हो।ज़मीनी स्तर पर इस व्यवस्था की निगरानी और क्रियान्वयन चुनौती बना हुआ है—केवल घोषणा से काम नहीं चलेगा।
यह विचार सिर्फ तकनीक का नहीं—यह “लोक-सत्ता की जानकारी आम जनता तक” पहुँचाने की दिशा में बड़ा कदम हो सकता है। अनुराधा तिवारी जैसी नागरिक-सक्रियता और गडकरी-मंत्रालय की राजनीतिक इच्छाशक्ति के मेल से यदि यह व्यवस्था सही मायने में लागू होती है, तो यह भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर पारदर्शिता की मिसाल बन सकती है।
लेकिन जैसे हर रोड बनाना मुश्किल होता है, वैसे ही इस सिस्टम को भी जमीनी असर देने के लिए समय, निगरानी और सक्रिय जनता-सहयोग की जरूरत होगी। आने वाले समय में यह देखने लायक होगा कि QR Code की यह पहल सिर्फ स्लोगन बनी रहती है या भारतीय सड़क उपयोगकर्ता-अनुभव में असल बदलाव लाती है।
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