ORS Drinks Ka Comeback – क्या फिर शुरू होगी चीनी से भरी सेहत की धोखाधड़ी?

कुछ हफ़्ते पहले Food Safety and Standards Authority of India (FSSAI) ने एक अहम निर्देश जारी किया — अब कोई भी फूड या बेवरेज ब्रांड सिर्फ इसलिए “ORS Drinks”, “Hydra ORS”, “Smart ORS” जैसे टैग या नाम नहीं लगा सकता जब तक उसका फॉर्मूला World Health Organization (WHO) की मानक दिशानिर्देशों के अनुरूप न हो।

बड़ा कारण था: बाजार में कई ड्रिंक्स “ओआरएस” के नाम पर बिक रहे थे — लेकिन असलियत में वे हाई-शुगर, नकली इलेक्ट्रोलाइट ड्रिंक्स थे जिन्हें दस्त या निर्जलीकरण (dehydration) में इस्तेमाल किया जा रहा था। इससे खासकर बच्चों का स्वास्थ्य जोखिम में रहा।

डॉक्टरों और बाल-स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस बैन का स्वागत किया—उनका कहना था कि यह कदम लाखों जानों को बचाने वाला है।

दबाव और ‘ब्रेक’—क्या हुआ?

लेकिन इस बीच बड़ी कंपनियों ने खामोश नहीं बैठे। उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर की और लाखों रुपये के “ओआरएस-ब्रांडेड” स्टॉक्स की वैल्यू को लेकर दबाव बनाया। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बैन पर अस्थायी तौर पर ‘स्टे’ लगा दिया—यानि अब वही पुराने मॉडल के फेक ORS-ड्रिंक्स फिर बाजार में आने की राह पर लग सकते हैं।

ORS Drinks

इस बीच यह भी उभरा कि ORS-टैग वाले ड्रिंक मार्केट का एक बहुत बड़ा सेक्टर बन चुके थे—₹1,000 करोड़ + तक का आंकड़ा सामने था।

विशेषज्ञों की चेतावनियाँ

प्रसिद्द बच्चों के चिकित्सक Dr Sivaranjani Santosh ने कहा कि ये नकली “ओआरएस” ड्रिंक्स बेहद ख़तरनाक थे—इनमें शुगर का स्तर WHO के मानक से १० गुना तक अधिक पाया गया। उनका मानना है कि यह सिर्फ शब्द का मुद्दा नहीं—यह मासूम बच्चों की जान से खेलने वाला विषय है।

इस कदम को लेकर प्रश्न उठ रहे हैं: क्या स्वास्थ्य की जगह फर्क आर्थिक हितों ने ले ली है? क्या नियामक सही दिशा में कदम उठा रहा है या दबाव में फंसा हुआ है?

स्वास्थ्य बनाम मुनाफा

यह मामला बताता है कि जब “ज़िंदगियाँ” बाज़ार की शर्तों के सामने आती हैं, तो सवाल कौन-सा पक्ष अपनी जीत दर्ज करेगा—जनस्वास्थ्य या कंपनियों का मुनाफा? अब जिम्मेदारी उपभोक्ताओं, डॉक्टरों और नियामकों की है कि वे जागरूक रहें। लेबल पढ़ें, सामग्री जांचें और “ओआरएस” नाम वाले किसी भी पैकेट को डॉक्टर की सलाह के बिना स्वीकार न करें। आज यह मामला सिर्फ टैग का नहीं—यह भविष्य की पीढ़ियों की सेहत की लड़ाई है।

सामान्य नागरिक का सबसे पक्का हथियार है — जागरूकता। Labels पढ़ें, उत्पाद की जाँच करें और जब भी “too good to be true” लगे — सवाल उठाएँ।आपके इस बारे में क्या विचार हैं,नीचे कमेंट करें।

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